अगहन मास 2025: अर्थ, महत्व, व्रत, पूजा और गीता जयंती का पावन महत्व

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की दिव्य छवि के साथ अगहन मास 2025 – मार्गशीर्ष मास का महत्व” लिखा हुआ धार्मिक बैनर, जिसमें लाल पृष्ठभूमि पर दीपक और कमल के फूल दर्शाए गए हैं।

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अगहन मास क्या है?

भारतीय पंचांग में बारह मास होते हैं और हर मास का अपना विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है।
इन्हीं में से एक है “अगहन मास” (Aghan Maas) जिसे मार्गशीर्ष मास (Margashirsha Maas) भी कहा जाता है।
यह मास विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण, श्रीविष्णु और लक्ष्मी माता की उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में इस मास का उल्लेख किया है —

“मासानां मार्गशीर्षोऽहम्।”
श्रीमद्भगवद्गीता 10.35

अर्थात् — “मासों में मैं मार्गशीर्ष (अगहन) हूँ।”

इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि अगहन मास का दिव्य महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया है।

अगहन मास का अर्थ

‘अगहन’ शब्द संस्कृत के ‘अग्रहन्य’ या ‘अग्रहन’ से निकला है, जिसका अर्थ होता है — “जिसमें श्रेष्ठ या अग्र रूप से ग्रहण किया जाए।”
अर्थात यह वह समय है जब व्यक्ति भगवान की कृपा, ज्ञान और पुण्य को ग्रहण करने में सक्षम होता है।

यह काल आध्यात्मिक साधना, दान, व्रत, उपवास और ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

अगहन मास का काल और अवधि

अगहन मास आमतौर पर कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर पौष अमावस्या तक रहता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह समय प्रायः नवंबर से दिसंबर के बीच पड़ता है।

इस मास के दौरान ठंड का मौसम आरंभ हो जाता है, वातावरण शांत और शुद्ध होता है — जो साधना, ध्यान और पूजा के लिए आदर्श माना गया है।

अगहन मास का धार्मिक महत्व

1. भगवान श्रीकृष्ण की विशेष उपासना

मार्गशीर्ष मास को भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय मास कहा गया है।
इस दौरान भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन में समृद्धि, शांति और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

2. श्रीलक्ष्मी पूजा का उत्तम समय

अगहन मास में गुरुवार के दिन श्रीलक्ष्मी माता की पूजा अत्यंत फलदायी मानी गई है।
इसे अगहन गुरुवार व्रत कहा जाता है।
जो भक्त इस दिन व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

3. दान-पुण्य का विशेष माह

इस मास में अन्नदान, वस्त्रदान, गौदान और तुलसी पूजन करने से अनेक जन्मों के पापों का नाश होता है।

“अगहन मासे दानं च, सर्वमासे फलप्रदम्।”
धार्मिक ग्रंथ

अर्थात — अगहन मास में किया गया दान सभी महीनों के दान से श्रेष्ठ होता है।

4. वेद और गीता पाठ का महत्व

यह महीना ज्ञान और आत्मचिंतन का समय है।
इस दौरान श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से बुद्धि निर्मल होती है और जीवन में धर्म का प्रकाश होता है।

अगहन मास में किए जाने वाले प्रमुख कार्य

  • प्रातःकाल स्नान व सूर्य अर्घ्य देना

  • भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की आराधना करना

  • तुलसी माता की पूजा एवं दीपदान करना

  • दान करना (विशेषकर अन्न, वस्त्र, और दीप)

  • भोजन में सात्विकता रखना – लहसुन-प्याज से परहेज़

  • ब्राह्मणों को भोजन कराना या अन्नदान करना

  • ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमो नारायणाय’ का जप करना

अगहन मास के प्रमुख व्रत एवं त्यौहार

अगहन मास में कई महत्वपूर्ण तिथियाँ और व्रत आते हैं जैसे —

  • अगहन पूर्णिमा – स्नान, दान और गीता पाठ के लिए शुभ।

  • गीता जयंती – यह वही दिन है जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था।

  • अगहन अमावस्या – पितृ तर्पण और दान का विशेष दिन।

  • गुरुवार व्रत (लक्ष्मी पूजा) – धन और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए।

अगहन मास का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

अगहन मास को “ज्ञान और कर्म के समन्वय का समय” कहा गया है।
इस मास में साधक को अपने कर्मों की समीक्षा करनी चाहिए और ईश्वर से अपने जीवन के उद्देश्य को समझने की प्रार्थना करनी चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार, इस मास में की गई पूजा, साधना और दान का फल सहस्रगुणा बढ़कर प्राप्त होता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

इस समय सर्दियों की शुरुआत होती है।
शरीर और मन दोनों स्थिर होते हैं, जिससे ध्यान और आत्मचिंतन में एकाग्रता बढ़ती है।
अन्न, दूध, घी, और गुड़ का सेवन स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना जाता है।
यह समय शरीर को रोगमुक्त और आत्मा को शुद्ध करने का उत्तम अवसर है।

क्या अगहन मास में गृह प्रवेश करना शुभ होता है?

हाँ, अगहन मास (मार्गशीर्ष मास) को गृह प्रवेश के लिए शुभ और मंगलकारी महीनों में से एक माना गया है।
इस मास का स्वामी भगवान श्रीकृष्ण (विष्णु) हैं, और यह मास लक्ष्मी कृपा प्राप्ति तथा सुख-समृद्धि के लिए विशेष रूप से शुभ कहा गया है।

शास्त्रों में उल्लेख है कि इस मास में किए गए शुभ कार्य जैसे —
गृह प्रवेश, पूजा-अर्चना, व्यवसाय आरंभ या किसी नई वस्तु की स्थापना —
इनका फल अत्यंत मंगलकारी होता है।

क्यों शुभ माना गया है?

  • यह समय सर्दियों की शुरुआत का होता है — वातावरण शुद्ध और शांत होता है।

  • ग्रह स्थिति सामान्यतः स्थिर रहती है, जिससे गृह प्रवेश का प्रभाव दीर्घकालिक और सकारात्मक होता है।

  • इस माह में लक्ष्मी पूजा और विष्णु आराधना का विशेष महत्व है, जो नए घर में सुख-शांति लाती है।

ध्यान रखें:

  • गृह प्रवेश की सटीक तिथि और मुहूर्त स्थानीय पंडित या ज्योतिषी से देखना आवश्यक है।

  • सामान्यतः अगहन शुक्ल पक्ष के दिन (पूर्णिमा से पहले का पक्ष) को अधिक शुभ माना जाता है।

  • अमावस्या, ग्रहण या राहुकाल में गृह प्रवेश से बचना चाहिए।

यदि उचित मुहूर्त और वास्तु विधि से गृह प्रवेश किया जाए, तो
अगहन मास में गृह प्रवेश करना अत्यंत शुभ, स्थायी और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।

निष्कर्ष

अगहन मास केवल एक धार्मिक अवधि नहीं, बल्कि आत्मविकास, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का पावन काल है।
जो व्यक्ति इस मास में श्रद्धा, नियम और सात्विकता से भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की उपासना करता है,
उसके जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

“अगहन मासे भक्त्या विष्णुपूजा यः करोति नरो नरः,
सर्वदुःखविनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम्।” 

अगहन मास 2025 से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. अगहन मास क्या है?

उत्तर:
अगहन मास (जिसे मार्गशीर्ष मास भी कहा जाता है) हिंदू पंचांग का नौवां महीना है। यह भगवान श्रीकृष्ण, विष्णु और लक्ष्मी माता की उपासना का पवित्र काल माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है — “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” अर्थात “मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूँ”।

2. अगहन मास कब शुरू होता है और कब समाप्त होता है?

उत्तर:
अगहन मास कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर पौष अमावस्या तक रहता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह समय सामान्यतः नवंबर से दिसंबर के बीच पड़ता है।

3. अगहन मास में कौन-कौन से व्रत और त्यौहार मनाए जाते हैं?

उत्तर:
इस मास में प्रमुख व्रत और पर्व हैं —

  • अगहन पूर्णिमा (दान व गीता पाठ का दिन)

  • गीता जयंती (भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता उपदेश का दिन)

  • अगहन अमावस्या (पितृ तर्पण के लिए)

  • गुरुवार व्रत या लक्ष्मी पूजा (धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए)

4. अगहन मास में कौन सी पूजा करनी चाहिए?

उत्तर:
इस मास में भगवान श्रीकृष्ण या विष्णु जी की पूजा सबसे शुभ मानी गई है।
भक्तगण तुलसी पूजा, दीपदान, अन्नदान, वस्त्रदान करते हैं और
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमो नारायणाय’ का जप करते हैं।

5. अगहन मास का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

उत्तर:
अगहन मास सर्दियों की शुरुआत का समय है जब वातावरण शांत और शुद्ध होता है।
इस समय ध्यान, साधना और आत्मचिंतन के लिए मन अधिक स्थिर रहता है।
अन्न, दूध, घी, और गुड़ का सेवन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।

6. अगहन मास में दान का क्या महत्व है?

उत्तर:
शास्त्रों में कहा गया है —

“अगहन मासे दानं च, सर्वमासे फलप्रदम्।”
अर्थात अगहन मास में किया गया दान सभी महीनों के दान से श्रेष्ठ होता है।
इस महीने अन्न, वस्त्र, गौदान और तुलसी पूजा विशेष पुण्यदायक होती है।

7. अगहन मास में क्या नहीं करना चाहिए?

उत्तर:
इस मास में नकारात्मक विचार, क्रोध, असत्य और हिंसा से बचना चाहिए।
मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
सात्विक आहार और सकारात्मक कर्मों का पालन करना सर्वोत्तम होता है।

8. अगहन मास में गीता पाठ का क्या लाभ है?

उत्तर:
अगहन मास में गीता पाठ करने से बुद्धि निर्मल होती है, मन शांत रहता है,
और जीवन में धर्म, ज्ञान और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
इसी मास की गीता जयंती पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

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